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मसाला / सतीश कुमार सिंह

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यह मालूम करना
कि मसाला
कितने प्रकार का होता है
कहाँ तक है इसका कारोबार
उतना ही ज़रूरी है
जितना कि स्वाद के पीछे भागने की
हमारी खुशबूदार इच्छाओं को जानना

इसके शौकीनों को हमेशा ही गुजरना होता है
चिकित्सकीय परामर्श से
बावजूद इसके
अधिकतर तो बच ही नहीं पाते
मसालेदार व्यंजनों के मोहपाश से

बेस्वाद है हो मसाले बिन जिंदगी
तम्बाकू को चूने के साथ
मसाले की तरह मिलाते हुए
कहते हैं मुखिया महाजन
भरेपेट होने पर भी मसाले की गंध पाकर
खुल जाती है उनकी भूख

रेत सीमेंट से बने मसाले में
किफायत बरतना अच्छी तरह जानता है
मुछमुंडा कांइया ठेकेदार

फ़िल्मों में मसाला न हो
तो कहाँ बजती हैं सीटियाँ-तालियाँ
मसाले के विज्ञापन से निकलकर
अदाकार बनी एक युवा लड़की ने
अपने साक्षात्कार में कहा
अभी अभी

पाँव के अंगूठे से मसले गए लोगों का मसला
जब खबरिया चैनलों के पैनल में
जोर पकड़ता है
तो मसले को मसाला बनते
तनिक भी देर नहीं लगती

मसाले के अर्थों में छिपे
इन करामातों को
कहाँ जान पाते हैं
मसाला कंपनियों में
मसाला कूटते खुरदरे हाथ

घर-रसोई सम्हालते
पसीने से नहाई हुईं
हाँपती गृहणियाँ भी
कहाँ समझ पाती हैं