जुगल छवि कब नैनन में आवै।
मोर मुकुट की लटक चंद्रिका सटकारो लट भावै॥
गर गुंजा गजरा फूलन के फूल से बैन सुनावै।
नील दुकून पीत पट भूषण मन भावन दरसावै॥
कटि किंकिनि कंकन कर कमलनि वचनित मधुर छवि छावै।
‘जुगल प्रिया’ पद-पदुम परसि कै अनल नहीं सचुपावै॥