Last modified on 23 नवम्बर 2020, at 23:37

सुख और दुख तो आते जाते / अशेष श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 23 नवम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुख और दुख तो आते जाते
जीवन तो ये चलता रहता
कभी धूप तो कभी छाँव है
मौसम सदा बदलता रहता...

कल जो था वह आज ना रहता
आज जो है वह कल ना रहता
परिवर्तन तो सृष्टि का नियम है
काल चक्र ये चलता रहता...

नदियों का ये निर्मल पानी
वक्त के जैसा कलकल बहता
नीर नया है नदी पुरानी
पानी सदा बदलता रहता...

सृष्टि के प्रारंभ से अब तक
स्थायी कोई रह ना पाता
कितने आये और गये
आना जाना चलता रहता...

असफलता विफलता का ये
खेल सदा ही चलता रहता
वीर न कभी उद्वेलित होता
सतत कर्म वह करता रहता...

मिलने और बिछड़ने का क्रम
सदा यहाँ तो लगा ही रहता
मन को भाये या ना भाये
कोई साथ सदा ना रहता...

कभी अचानक खुश हो जाता
बिना वज़ह कभी दुख में रहता
बारिश के मौसम जैसा ही
मन तो सदा बदलता रहता...