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मुक्तक-१ / शंकरलाल द्विवेदी

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किसी पर रीझ जाते हो, किसी से रूठ जाते हो।
किसी के हाथ लगते हो, किसी से छूट जाते हो।।
भटकते हो हृदय मेरे, तभी सौन्दर्य सागर में-
कहीं तुम डूब जाते हो, कहीं तुम टूट जाते हो।।