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बुरी ख़बर / मनमोहन

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शायद

एक बुरी ख़बर

हमें फिर सुननी है


वह क्या होगी

हमें अन्दाज़ा है


उसकी जगह तक

कोई छिपी हुई नहीं


अभी वह आई नहीं है

चाहें तो कह सकते हैं

बनी नहीं है


लेकिन बन रही है

इसका गहन अनुमान है


बड़े-बड़े शक्ति-चक्र

जिनमें से कई भूमिगत और अदृश्य हैं

उसे बनाने में

दिन-रात लगे हैं


हो सकता है

अख़बार के किसी कोने में

वह एक बहुत छोटी-सी ख़बर हो

या वह भी न हो

अब बुरी ख़बर से डरना भी क्या


इस बात को अब एक

अरसा हुआ

जब हमने सुनी थी

बुरी ख़बर

और उसे अच्छी तरह समझ लिया था