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वैसी रात बढ़ाई / बहिणाबाई

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वैसी रात बढ़ाई
सब जानो तुम भाई॥
देव कहे सो कहा न होवे,
सुन रे मूढ़ो अंध।
लीला मनुख भई जीस,
मणिका छूटा बंद॥
रावन मार के विभीषण लंका,
यह पाई राज्य कमाई।
राक्षस कू अमराई दीयो,
ये वैसे राम नबाई॥
पहरादों विश्व समिंदर बुरना
परबत लोट दिया है।
आगे जलावे पिता उसका
सत्व से राम रखावे॥
पानी मांहे गजकू छोड़े,
सावज मार न भाई।
उसको रन्यो कुटनी मुक्तो,
करता राम सो वोही॥
मिरा को बिख अमृत किया,
फत्तर कू दूध पिलाया।
स्वामी बिख चढ़े तब राम-राम,
ऐसो बीरद बढ़ाया॥
शनि को रूप लिया,
राम राखो भक्त को सीस।
ब्रह्मन सुदामा सुन्नो की नगरी,
वैसे करे जगदीश॥
वैसे भगत बहुत रखे,
तब कहा कहु जी बढ़ाई।
बहिनी कहे तुम भक्त कृपाल हो,
जो करे सो सब होई॥