Last modified on 16 दिसम्बर 2020, at 19:32

गीतिका-१ / शंकरलाल द्विवेदी

Rahul1735mini (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:32, 16 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकरलाल द्विवेदी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

'शंकर' कंगाल नहीं

कल सारा जग था सगा, किन्तु अब कोई साथ नहीं।
इसलिए कि मेरे हाथ रहे, अब कंचन थाल नहीं।।

आ कर भी द्वार सुदामा अब के होली मिला नहीं।
इसलिए कि कान्हा पर माँटी है, रंग-गुलाल नहीं।।

अब 'तिष्यरक्षिता' खटपाटी पर है, पय पिया नहीं।
इसलिए कि अँधा होने को तैयार कुणाल नहीं।।

शासन ने मुझको अब तक कोई उत्तर दिया नहीं।
इसलिए कि मैंने पूछे थे कुछ प्रश्न, सवाल नहीं।।

जनता ने बुला लिया कवि को, पर कुछ भी सुना नहीं।
इसलिए कि उसने गाए थे कुछ गीत, ख़याल नहीं।।

माँगो! कोई याचक निराश हो वापस गया नहीं।
इसलिए कि काया भर कृश है, 'शंकर' कंगाल नहीं।।