आज नमन उन महापुरुषों को, जिनका धर्म परोपकार,
मात-पिता बन्धु व भ्राता, समस्त विश्व उनका परिवार।
जीवित रहे और प्राण तजे, औरों के हित ले अवतार,
मानवता की बेल को सींचा, बन आदर्शों के पालनहार।
दया क्षमा और सहिष्णुता, न्याय समता की जयजयकार,
भेदभाव मिटा जगत में, प्रतिष्ठित शांति का अधिकार।
अमर वही गुणीजन जग में, प्रेम वाणी की अमृत बौछार,
उनके पदचिह्नों को पूजा, स्नेहसिक्त नम अखिल संसार।
अनुकरण की संस्कृति छोड़, मात्र स्व अस्तित्व स्वीकार,
छोटी से छोटी इकाइयों में, बँट गए भू पर कुल परिवार।
स्नेह समर्पण त्याग सबका, सदस्य करते हैं अब व्यापार,
प्रतिस्पर्द्धा की दौड़ में दौड़, भूल गए हम सब संस्कार॥
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की चाह, करते हैं हम कल्पनाकार,
सद्भावों के अतुल्य कोष को, उँडेल सकें हम बारम्बार।
हर्ष में हर्ष व्यथा में व्यथित, सह अनुभूति स्वार्थ की हार,
अखंड अटूट अटल ऐक्य को, जाए समर्पित हर परिवार।