अफ़वाह है कि
एक बकरी है
जो चीर देती है सींग से अपनी
छाती शेर की ।
खरगोश बिल में दुबका है,
बाघ मान्द में डर से,
लोमड़ी और गीदड़ नहीं बोल
रहे हैं कुछ भी ।
पर एक जोंक है
बिना दाँत, हड्डी के भी रीढ़ वाली
वह चूस आई है सब ख़ून बकरी का ।
कराहती बकरी कह रही है —
“अफ़वाह की उम्र होती है,
सच्चाई ने मौत नहीं देखी है
क्योंकि यह न घटती है, न बढ़ती है।“