देनी है तुम्हें
गुरु-दक्षिणा कुछ
ओह! जिन्दगी
पाठशाला के बिन
सिखाया मुझे
गिर के सँभलना।
मुखौटे सभी
तुमने तो उतारे
जब भी किए
दुःख ने पन्नों पर
गहरे हस्ताक्षर।
देनी है तुम्हें
गुरु-दक्षिणा कुछ
ओह! जिन्दगी
पाठशाला के बिन
सिखाया मुझे
गिर के सँभलना।
मुखौटे सभी
तुमने तो उतारे
जब भी किए
दुःख ने पन्नों पर
गहरे हस्ताक्षर।