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कविता / सत्यनारायण स्नेही

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कविता
शब्दों के तरकश से निकली
एक ऐसी बानगी है
जिसमें एक रूह होती है
जहां बेज़ुबान होता है आदमी
वहां कविता बोलती है
कविता
हर शब्द के
नये अर्थ खोलती है
जब बन्द होती है
आदमी की धड़कन
कविता इन्सान की
नब्ज़ टटोलती है
कविता
एक आईना है
जिसमें चेहरा नहीं
करामात नज़र आती है
अन्धेरे में एक किरण
कविता
भटके को राह दिखाती है
कविता महज़ कविता नहीं
कविता एक सुधा है
अमरता के लिए
कविता एक दुआ है
सभी के लिए
शब्द है व्यर्थ
अगर नहीं समर्थ
कविता एक जीवन है
जीने के लिए