चाहे बुद्ध हो या श्याम कृष्ण,
चाहे पंडित श्रीराम हो या रामकृष्ण।
चाहे गीता हो या गायत्री,
चाहे सीता हो या सावित्री।
सभी ने सुझाया है, एक ही मार्ग
सबसे उत्तम मध्यम मार्ग।
ना तो निम्न, ना ही उच्च
मध्यम मार्ग ही है सर्वोच्च।
ना हो केवल एक की हानि,
ना हो केवल दूजे का लाभ।
हो जिसमें दोनों का समन्वय,
वही है उत्तम और सर्वोच्च।
ज़रूर घर हो, एक का खुशहाल
पर न हो, दूजे का बदहाल।
ज़रूर संवरे घर एक का,
पर न उजड़े घर दूजे का।
ज़रूर बढ़े एक परिवार,
पर ना पिछड़े दूजा संसार।
ज़रूर एक का हो उद्धार,
पर न हो दूजा, बे घर-बार।
ज़रूर एक बेटा, चढ़े हिमालय,
पर ना पंहुचे, दूजा अनाथालय।
ज़रूर एक बेटी के, सजे हाथों में चुड़ी,
पर ना थमे, दूजे हाथों में सिगड़ी।
ज़रूर बजे एक घर, शहनाई और बाजे
पर ना उठे, दूजे घर जनाज़े।
हैं दोनों, एक ही शरीर के अंग,
और ना बनाओ ये शरीर अपंग।
है सबसे ऊँचा मार्ग समन्वय,
सभी पाये जहाँ, छाया और आश्रय।
इसलिए एक बार फिर विचार करे,
मध्यम अपनाये और मानवता का संचार करे।