जिसके आँगन बच्चे घुटनों चले
जिसकी रसोई में प्रेम पका
सुबह शाम
गमलों में गुलाब खिले हर वसंत
तीज त्यौहार मने, भाँवरे पड़ी
किलकारियाँ गूँजी
लोरियाँ गाई
तुतलाया समय
परवान चढे सपनें
उस घर की दहलीज़ से आये
यात्रा कर हर रोज
पुनरावर्ती करते नित्य
अलग-अलग घरों से आये
वृद्धाश्रम के लोग
बंजारे नहीं हैं।