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निमंत्रण / कुमुद बंसल

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थके-थके से तन
हारे-हारे से मन
पुष्प विहीन सूखे-सूखे से उपवन
सिकुड़े- से साहस
फैली-सी निराशाएँ कोई तो आए बयार
लेकर नई आशाएँ
उम्मीद -भरा कोई उद्घोष हो
संकटों से जूझने का जोश हो
रक्त को अपने शिथिल न पड़ने दे
निमन्त्रण दे बादलों को
बिजली कड़कने दे
यह संघर्ष है सन्धि-काल का
नवप्रभात, उन्नत
उज्ज्वल भाल का।
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