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बेला महकते ही / नरेन्द्र दीपक

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बेला महकते ही तुम्हारी याद आ जाती
बिजली चमकते ही तुम्हारी याद आ जाती।

उठती घटाओं पर नहीं बहका कभी ये दिल,
बादल गरजते ही, तुम्हारी याद आ जाती।

सुमनों के इषारे भले मैं टाल दूँ लेकिन,
कलियाँ चटकते ही, तुम्हारी याद आ जाती।

कितना भी तड़प ले दिल नहीं परवाह मुझको,
आँसू छलकते ही तुम्हारी याद आ जाती।

ठण्डी फुहारें तो तड़प कर झेल लेता मन,
पानी बरसते ही तुम्हारी याद आ जाती।

पतंगों के मरण की कुछ नहीं परवाह ‘दीपक’
लौ के मचलते ही तुम्हारी याद आ जाती।