Last modified on 2 फ़रवरी 2021, at 21:10

चिड़िया / वन्दना टेटे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:10, 2 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वन्दना टेटे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह चिड़िया, जो कभी,
सोने की चिड़िया कहलाती थी ।
पिंजरे में बन्द थी जब,
तब वह रोती थी ।

आज वह आज़ाद है,
फिर भी रोती है,
लेकिन रोती वह चुपके-चुपके।

आँसू नहीं बहते उसके,
वह तो ख़ून के आँसू रोती है ।
जब वह पिंजरे में थी तो,
उसके सुनहले पंख पिंजरे की,
दीवार से टकराते थे,
और आज वह आज़ाद है तो,
कई भयानक पक्षी उसे,
मारते हैं चोंच ।

वह रोती है अपने बच्चों के लिए,
क्रूर आतंकवादी पक्षी,
किए देते हैं उनका ख़ून।
अलगाववादी पक्षियों के झुण्ड,
किए देते हैं सफ़ाया,
उसके बच्चों की एकता का ।

जातिवादी पक्षी बना दे रहे हैं,
उसके बच्चों को छोटा बड़ा,
हो छोटे-बडे वे,
होते ख़ून के प्यासे ।

कैसे समझाए चिड़िया अपने
बच्चों को, कैसे बचाए वह,
इन क्रूर राक्षस पतियों से
रो रही चिड़िया, घुट रही चिड़िया,
कोस रही चिड़िया, अपनी क़िस्मत को ।