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चौठी चान / आभा झा

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भाद्र शुक्ल रोहिणी संग लय
आबि रहल छथि चौठी चान,
पत्र, पुष्प, फल, अक्षत चानन
कलशदीप कएलहुँ ओरियान।

सजल-धजल डाली-हारी मे
शोभित अछि बहुविधि पकवान,
नव नदिया केर सोंन्हगर द' ही
स्वत: घीचै अछि सबहक ध्यान।

शुभ्र वसन यज्ञोपवीत सँ...
करब मृगांकक हम सम्मान,
यथा योग्य नैवेद्य चढ़ाएब
भावक भूखल छथि भगवान।

दर्शन मंत्र पढ़ब सभ मिलि कऽ
हाथ लेने दधि, फल, मिष्ठान,
शशि निरेखि हम शीश झुकाएब
पाएब विधु सँ आंग-समांग।

चंद्र-सूर्य-तटिनी-तरुवर-गिरि
ई सब छथि प्रकृतिक मन प्राण,
पूजक बनल रहय जौं प्राणी...
तखनहि जगतक अछि कल्याण।