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आपदाग्रस्त / राजेश कमल

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1.
अड्डेबाज़ी नहीं
दोस्त नहीं
अट्टहास है मौत-सा
नहीं जीवन जेल-सा

भोजन है
चाय है
प्रेम है,
न्यूनतम ख़तरों-सा

चुम्बन है,
अधिकतम ख़तरों-सा
जमा सिर्फ़ शराब है
भय है कि भयावह

अगर इस तूफ़ान से निकल गया
और कोई दोस्त छूट गया
कोई नातेदार
कोई हमनवा
कोई प्यार
तो निकलना कितना साबुत होगा
कितना खरा होगा जीवन

2.
वे
जिनके छत नहीं हैं
जो रोज़ कुआँ खोदते
रोज़ पीते पानी

आँसुओं को पी
कितने दिनों तक
कर पाएँगे गला तर

कितने दिनों तक
रोटियों का विकल्प
उँगलियों को चाटना होगा

और
कितने दिनों तक
सिर्फ़ लोरियाँ सुना
बच्चों को सुलाया जाएगा

कहीं ऐसा न हो
तूफ़ान से पहले ही
हलक जाय सूख
तड़प जाएँ प्यारे


3.
कुछ लाड़ले
इसी मुल्क के
दिए हैं चल

ध्वस्त करते
मील के पत्थरों को
अपने घर की तरफ़
चट्टानी जीवटता के साथ

शायद घर पर रोटी होगी
उसी घर पर
जिसे छोड़ा था कभी
रोटी की ही तलाश में
हज़ारों मील फ़तह करने वाले
इन भारत पुत्रों के लिए
क्या कोई बजाएगा ताली?