Last modified on 25 फ़रवरी 2021, at 17:24

बेरोज़गार हम / शांति सुमन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:24, 25 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शांति सुमन |संग्रह= }} <poem> पिता किसा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पिता किसान अनपढ़ माँ
बेरोज़गार हैं हम
जाने राम कहाँ से होगी
घर की चिन्ता कम

आँगन की तुलसी-सी बढ़ती
घर में बहन कुमारी
आसमान में चिड़िया-सी
उड़ती इच्छा सुकुमारी

छोटा भाई दिल्ली जाने का भरता है दम ।

पटवन के पैसे होते
तो बिकती नहीं ज़मीन
और तकाजे मुखिया के
ले जाते सुख को छीन

पतले होते मेड़ों पर आँखें जाती है थम ।

जहाँ-तहाँ फटने को है
साड़ी पिछली होली की
झुकी हुई आँखें लगती हैं
अब करुणा की बोली सी
समय-साल ख़राब टँगे रहते बनकर परचम ।