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गड़रिया / देवेश पथ सारिया

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वह एक गड़रिया है
जंगल से सटे गाँव का गड़रिया
अपना रेवड़ लिए
गाँव से जंगल की पगडंडी पर
लाठी खड़काते घूमता है वह

कान में बाली,
भरे चेहरे पर घनी मूँछें
गँवई भाषा
उसके गीतों में
लोकदेवताओं की स्तुति है
जो रेवड़ के लिए संगीत है
और भेड़ों के गले की घंटियाँ
गड़रिये के लिए संगीत

उसके रेवड़ में कोई सौ भेड़ हैं
जिनमें से हर एक को
अलग-अलग पहचानता है गड़रिया

भेड़ें उसकी आवाज़ पर चलती हैं
उसके संकेत पर मुड़ती हैं
उसकी ललकार पर रुकती हैं
मैने उसे देखा है
लाठी लिए हुए,
लाठी खड़काते हुए
पर किसी ने उसे,
कभी नही देखा
किसी भेड़ पर लाठी उठाते हुए

हर गड़रिये का
अपना अलग इशारा होता है
लाठी खड़काने का अलग अंदाज़
जिससे वह नियंत्रित करता है
अपना रेवड़ का साम्राज्य

इन दिनों,
सिकुड़ चुका है जंगल
सिमट गये हैं चरागाह
उसका रेवड़ छोटा हो रहा है
गड़रिये का भविष्य संशय में है
और वह आज के बचे-खुचे चरागाह में
बेफ़िक्र भेड़ चरा रहा है
कल की चिंता नहीं करता गड़रिया