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महानगर / अजित कुमार


महानगर

न भूँकते हुए कुत्ते थे,
न रास्ता काटती बिल्लियाँ,
पर ठिठककर खड़े हो गये तुम…
वहाँ एक छोटा चूहा
दम तोड़ रहा था

आकाश
एक चील की तरह
मुँह बाए हुए था ।