साँझ सकारे
अस्त, सूर्य के साथ हुए हम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !
ऐसे बिछुड़े
पुनर्मिलन फिर सम्भव कभी
नहीं हो पाया
यादों के जंगल में
किए रतजगे
कोई भोर न आया
नदी किनारे
लहरें देखीं, नयन हुए नम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !
कितने दिन बीते
जब हम पर
हरसिंगार के फूल झरे थे
बारिश में भीगे थे
बाँहों में हमने
कचनार भरे थे
आँसू खारे
ढूँढ़ रहे हैं अपना उदगम
बिना तुम्हारे
ओ शतरूपा !