Last modified on 28 मार्च 2021, at 00:01

कुलीन / अरविन्द श्रीवास्तव

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 28 मार्च 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अरविन्द श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारे मस्तक पर जो पगड़ी है
वह मेरी लंगोट के हिस्से वाले
कपडे से बनी है
मैंने बर्फानी रातों के लिए जो लकड़ी बचाए रखा था
तुम्हारे दरबार को गर्माहट प्रदान कर रही है
तुम्हारे रोयेंदार दस्ताने पर
मेरे पालतू खरगोश का नाम होना चाहिए था
मेरा बच्चा स्कूल से भाग आया है
वह डरा-डरा सा है
तुम्हारी गुरेरती आँखों ने देख लिया था उसे
और तुम्हारे साले की उस पर बुरी नज़र है
ऐसा उसने होशो-हवास में बताया था
आज उस बच्चे की आँखें आंसू से भरी थी
वह कहते-कहते सो गया है-
मैं बड़ा होकर उससे बड़ा कुलीन बनूंगा !