दीर्घकालिक सपनों के बुरे दौर में भी
मैनें प्रेम के प्याले छलकने नहीं दिये
एक सीप के अन्दर कोई मोती
सदियों तट पर इंतजार करता रहा
एक हिमखंड लाख वर्षों से भटकता रहा समुद्र तल पर
एक तारा टूटकर गिरता है मेरी स्मृतियों में
एक ठहरी हुई शाम
बेलगाम स्वभाव पर बुरा असर डालती है..
मैं आसमान से कोई स्वर्ग नहीं मांगता
एक टुकड़ा बादल गले को तर करता है
मेरी आत्मा किसी हुक्म का गुलाम नहीं, जैसे
कोई बयान मैं ज़ारी करूँ
इससे पहले वातावरण में घुल चुके होते हैं
मेरे अस्फुट स्वर !