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जुगनू / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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रात अन्हरिया चमकै जुगनू
तारा जैसनोॅ लागै जुगनू

वर्षा राती ई सबसें न्यारोॅ
धरती के शृंगार छेकै ई

वर्षा के मनुहार छेकै ई
सबके मन रोॅ प्यार छेकै ई

तारा सबके अनुगामी ई
बहुते रूप मनोहर एकरोॅ

धरती झकझक लागै रजनी
भुकभुक जोत बरै भगजोगनी

कŸोॅ अपरूप लगै छै रजनी
जोगनी वेष धरि के धरती
लागै बूलै परती-परती

साड़ी गोंटा करै इंजोर
घूमै योगिनी भोरम-भोर।