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परिचय (कविता) / मोहन अम्बर

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तुम मुझको पहिचान सको तो पहिचानो
तूफानों के साथ रहा हूँ बुझते जीवन दीप को
यह कजरारी रात सँवर कर आई नखत निखार से
और मुझे बहकाना चाहा अपने रूप सिंगार से
लेकिन मैंने आँख न ऊपर करी तनिक भी देर को
रहा हृदय की बात बताता किसी धूल के ढेर को
तुम मुझको पहिचान सको तो पहिचानो
युगों युगों से भेज रहा हूँ अपना पानी सीप को
तूफानों के साथ रहा हूँ बुझते जीवन दीप को
वही रात का सपना अपना रूप बदल कर आ गया
सुबह किसी के चरणों की अरूणा पर मन ललचा गया
लेकिन मैंने अगवानी में नहीं जगायी साँस को
और यही समझाता आया अपनी पागल प्यास को
तुम मुझको पहिचान सको तो पहिचानो
मैं सदियों से जोड़ रहा हूँ युग पीड़ा से गीत को
तूफानों के साथ रहा हूँ बुझते जीवन दीप को
एक बाग़ में गया उड़ाई हँसी निखरते फूल ने
किया वही आघात पुनः चुभ कर जहरीले शूल ने
लेकिन मैंने अधरों पर से वह दुख भी लौटा दिया
और सताने वाली निर्मम दुनिया को बतला दिया
तुम मुझको पहिचान सको तो पहिचानो
मैं सदियों से खोज रहा हूँ शूल डगर पर मीत को
तूफानों के साथ रहा हूँ बुझते जीवन दीप को