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स्वप्न-भंगिमा / मोहन अम्बर

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सत्य का तो पारदर्शन हो गया,
स्वप्न में खोये हुए हैं हम।
रात भर तो बांह में अँधियार की,
हम कथा लिखते रहे हैं प्यार की।

जब दिए की मृत्यु पर जन्मीं सुबह,
धूप तक सोये हुए हैं हम। सत्य का तो...
क्या अवस्था थी हमारी क्या हुई,
भावनाएँ हो गई है मरदुई।

प्राण मन की घंटियाँ सुनते नहीं,
इस तरह रोये हुए हैं हम। सत्य का तो...
हैं अचम्भित देख कर बाज़ार को,
साफ करवाते सभी तलवार को।

स्वर्ण चांदी इस तरह तुम्हारे राज में,
अश्रु के धोये हुए हैं हम। सत्य का तो...
जीतने को व्यर्थ के आकाश को,
मार बैठे प्यास के विश्वास को।

नाम वैसे फ़सल वाले बीज पर,
दर्द में बोये हुए हैं हम। सत्य का तो...