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प्रपात / रामकृपाल गुप्ता

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लहर-लहर
छहर-छहर
चल पडे़ प्रपात किधर
चल पडे़ प्रपात
वेग भरे
रजत की-सी धार
भेद भरे
कल-कल से प्यार
गीत भरे प्रीति भरे
लिये अरूण प्रात
लहर-लहर
चल पडे़ प्रपात किधर
शौर्य भरे, गज की-सी चाल
प्रभा धरे हीरक की माल
रीति भरे मीत हरे प्रीतम के पास
चले प्रीतम के पास
लहर-लहर
चल पडे़ प्रपात किधर
मानस में हँसता-सा चाँद
रूप भरी निशि के उन्माद
मौन मुखर नीरव के राग
मंजुल हे गिरि के सुहाग
तिमिर भरी अमा के उसाँस
खग-मृग वनवासियों के भ्रात
लहर-लहर
छहर-छहर चल पडे़ प्रपात किधर
चल पडे़ प्रपात।