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फागुन / रामकृपाल गुप्ता

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शिव को न छोड़ा, न ब्रह्मा को छोड़ा
ना छूटे विष्णू भगवान,
सबही क मनवा वकल होई डोला
जब लागे पुहुपना क बान॥सारारारा
फागुन महिनवा पलाश एस लहकै
जैसे जियरा में उठेला तुफान
रंगवा गुलाल संग होली मिलनवा
पीये छकि-छकि बुढवा जवान॥सारारारा
बौराए अमवा अनंग रस महके
कुहु-कुहु छेड़े कोयलिया तान
भइया जवनरी क बतिया न पूछा
आज बुढिया भइल बा जवान॥सारारारा
ईतो बंसत रंग बगराया
फूले फूले शुधा संग रास रचाये
कान्हा छेड़ मुरलिया क राग॥सारारारा
भौंरा कमल संग रतिया बिताये
दिनवा में करे गुंजार
मदमाती तितली फूल-फूल घूमे
बांटे पराग व प्यार॥सारारारा