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महानदी उतरी / रामकिशोर दाहिया

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सूखे-तपते
हार-खेत पर
महानदी उतरी
झूम रही फिर
हरियर खेती
फरिया१ पहन हरी

खुले मेंड़ पर
हरी घास के
हार-बँगार मदरसे
रातों-दिन
पढ़ने को आते
डोर-मवेशी घर से

अक्षर - गिनती
चरर - चरर सब
बाँचें घरी-घरी

मका, धान, तिल,
उरदा, अरहर,
काकुन डिगला ताके
ढाँक गए
हल-डिंगुरे माटी
कोदो-कुटकी झाँके

राहगीर
आकर सुस्ताले
कहे लहुर जुन्हरी२

साही, साँभर,
सुअर बनाए
रसरी-गली अखाड़े
खेतों में
बसने को सूरज
मैडे़-खुँधरे३ गाड़े

लगा-लगाकर
चंदा देखे
बदरी कै खुम्हरी४
            
टिप्पणी-
१.फरिया-किशोरियों के पहनने का वस्त्र, जो धोती से छोटा होता है।
२.जुन्हरी-छोटी मकाई।
३.मैड़े- खुँधरे-खेत की जमीन पर बाँस बल्लियों से बने हुए झोपड़े।
४.खुम्हरी-बाँस की खप्पचियों और जंगली पत्तों से बनाया गया बड़ा हैट।


-रामकिशोर दाहिया