शक्ति स्वरूपा जग जननी,
निज अंतर हमको पाला।
दंभ भरा आचरण लिये हम,
जो चाहा वह कह डाला॥
राधा, मरियम, दुर्गा, सीता,
जाने कितने नाम दिये।
जब चाहा पूज्या समझा,
जब चाहा अपमान किये।
जब चाहा ली अग्निपरीक्षा,
दे डाला विष का प्याला॥
कभी दुलारे माता बनकर,
बहन सरीखा प्यार मिले।
साथ चले वह पत्नी बनकर,
बेटी-सा उपहार मिले।
जीवन को महकाती पग-पग,
नारी फूलों की माला॥
मृत समाज होता वह जिसमें,
नारी का सम्मान नहीं।
नारी हर स्वरूप में पूजित,
वह कोई समान नहीं।
सहन शक्ति यदि टूट गई तो,
चंदन बन सकता ज्वाला॥