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कोरी चुनरिया / संजीव 'शशि'

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प्रीत के रंगों रँगी कोरी चुनरिया।
आ गयी हो बाबरी तेरी नगरिया॥

एक पल को भी नहीं सोचा बिचारा।
बस तुम्हारे नाम का लेकर सहारा।
प्रेम सरिता के सहारे नाव मेरी-
प्रेम की पतवार ही देगी किनारा।
देहरी पर प्रीत की बीते उमरिया।

अनकहा अहसास आलिंगन तुम्हारा।
भा गया मुझको पिया आँगन तुम्हारा।
मैं तुम्हारा स्वप्न नयनों में बसा लो-
फागुनी हूँ रंग मैं सावन तुम्हारा।
बरस जाऊँ प्रीत की बनकर बदरिया।

आस में तुम से मिलन की घूमती मैं।
कल्पनाओं में मगन हो झूमती मैं।
हर घड़ी, हर पल अधर पर नाम तेरा-
नाम लिख-लिख कर तुम्हारा चूँमती मैं।
साँवरी कर दे मुझे मेरे सँवरिया।