कितना पाया मैंने तुमसे,
ये कैसे तुमको बतलाऊँ।
मैं गीत-गीत तुमको गाऊँ॥
पथ पर काँटे या फूल बिछे,
तुम हाथ थाम कर साथ चले।
अँधियारों ने जब-जब घेरा,
दीपक बाती बन साथ जले।
तुम ही पथ हो, तुम हो मंजिल,
कैसे मैं तुमको बतलाऊँ।
मरुभूमि सरीखे जीवन में,
लेकर आयीं रिमझिम सावन ।
आलिंगन में पाकर तुमको,
प्रिय प्राण हुए मेरे पावन।
जिस रंग मुझे रँगना चाहो,
उस रंग प्रिया मैं रँग जाऊँ ।
तुम से ही खुशियाँ हैं सारी,
तुम जीवन का आधार प्रिये।
उपहार फूल-सा है पाया,
तुमसे सुखमय संसार प्रिये।
अब दिवस, माह की कौन कहे,
मैं जनम-जनम तुमको पाऊँ।