हे शिव! तुमने,
एक बार ही पिया हलाहल,
हम तो नित्य पिया करते हैं।।
सुना, एक ही बार हुआ है
सागर मंथन।
सब देवों ने किया तभी था,
अमृत प्राशन।
भोजन हमको,
मिलता नहीं पेटभर यद्यपि,
श्रम का दान दिया करते हैं।।
अमृत पान किया देवों ने,
अमर हो गए।
दूर मृत्यु के भय से वे सब,
निडर हो गए।
लेकिन हम तो,
प्रतिदिन जीवन संघर्षण में,
मरते और जिया करते हैं।।
पास नहीं मंदार हमारे,
नहीं वासुकी।
नहीं सहायक देव, न कोई,
शक्ति राक्षसी।
बिन सहायता,
बिन साधन के सागर मंथन,
हम तो नित्य किया करते हैं।।