एक दिन घटता है कुछ
तक़दीर की ही तरह!
काग़ज़ पर अचल वे
सिहर उठते हैं,
मन की एक ठेल भर से
शब्द ही तो हैं
थिर होकर भी अथिर!
एक दिन घटता है कुछ
तक़दीर की ही तरह!
काग़ज़ पर अचल वे
सिहर उठते हैं,
मन की एक ठेल भर से
शब्द ही तो हैं
थिर होकर भी अथिर!