सुना है!
जीवन की अर्थवत्ता
सहजता, उदारता और तरलता
उन अंतिम और डूबते पलों में
कुछ रीत जाया करती है
अक़सर होता यूँ भी है कि
नहीं पहचान पाते हम
ख़ुद को
न ही अपने-अपनों को!
विस्मृति जाने कब दबे पाँव आ
स्मृति का अतिक्रमण कर लेती है!
बस एक प्रार्थना!
मृत्यु जब दबे पाँव आए
तो उस पल भी जगा रहे
हर जीवन में
जीवन के प्रति
एक चौकन्ना
और निर्दोष अहोभाव!
बचा रहे
सभी इच्छाओं और तृष्णाओं से परे
एक तारल्य
रीतते
जीवन-ताल में!