एक दस्तक ने कहा
"तीज पर ऐसे" ?
पलट कर देखा तो
सामने एक तीज खड़ी थी!
उसे देख कई रंग मन में उतरे
सतरंगी मारवाड़ी लहरिया तन पर
हाथों में लाख का पंचरंगी मूँठ्या
और सूरज माथे पर!
एक आवाज़ फिर लौटी
उसे सुना तब तक
तीज भी लौट चुकी थी!
एक इन्द्रधनु ही था जो क्षण भर ठहरा था!
रह गई थी बस एक कौंध;
यह कहती हुई
" त्योहार
मन के मनके होते हैं
फिरे तो उत्सव
न तो कोरे! "