Last modified on 20 जून 2021, at 23:45

स्वीकारोक्ति / प्रतिभा किरण

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:45, 20 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा किरण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं तुम्हारे पाँवों के नीचे
सड़क बनकर बिछा हूँ
और तुम एक
ढीठ
अड़ियल

यातायात के नियमों का
पालन करते हुए
मेरे हृदय पर
आघातें करती हुई चली जा रही हो

तुम ज्ञान हो अब
तुम्हें रोकना निरर्थक होगा
तुम्हें सीख लूँगा अब
बिना किसी दण्ड के

तुम सजल थी
उड़ गई एक दिन भाप की तरह
मैं पेंदी में भी न बचा पाया
तुम्हें अपनी अग्नि से

एक जङ्गल की खीज लिए
पत्ते सा तुम को गिरते देखा
तुम अनन्त में जा मिली और
मैं जोड़ न सका वापस

तुम हिसाब-किताब की
इतनी पक्की
कि तुम्हारी पूर्वमृत्यु भी
किताब में दबकर हुई

मैं छद्म शान्ति का बुना हुआ
समझ ही नहीं पाया कि
तुम्हारा प्रवेश ही
एक भूला पर्व था

तुम जाती ही तो रही थी
तुम समय थी-नगण्य
तुम्हें स्वीकार न कर सका
तुम सत्य थी-कटु