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तुम / संजय सिंह 'मस्त'

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तुमको मेले में देखा था पहली बार।
फिर मेले मेंं मेला कहाँ देख पाया!
अनायास खिंचा चला गया तुम्हारी ओर,
जैसे ग्रह के साथ उसका उपग्रह।
तुम झूले के पास खड़े थे। मैं वहाँ भी था।
तुम झूले में बैठ गये,
मैंने झूले वाले को दस का नोट दिया,
मुझे फ़ायदा हुआ या नहीं क्या पता!
तुम्हें ऊपर नीचे आते देखता रहा।
तुम चूड़ी कंगन की दूकान मेंं थे,
मैं वहाँ भी खड़ा चूड़ियों का मोलभाव,
करता रहा न जाने किसके लिये।
तुम्हें शायद अपनी जीत का भान,
हो गया था।
तुमने लिपस्टिक, बिंदी ली,
मैंने भी ली जाने क्यों!
तुम वापस चले गये,
मैं कहाँ वापस जाता!
मेले मेंं ही हूँ,
तुम्हारे इंतज़ार में,
लिपस्टिक, बिंदी मुट्ठी में भींचे हुए.