Last modified on 21 जून 2021, at 22:55

स्मरण-वीथिका / विमलेश शर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:55, 21 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विमलेश शर्मा |अनुवादक= |संग्रह=ऋण...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन पंछी हुआ
तो आकाश की कामना हुई
ख़्वाबों के पंखों से
उड़ने की चाहना हुई
बारिशों में भीग
स्मृतियों में डूबता, तिरता, ठहरता
बिसूरता मन
तुम्हें महसूस करता रहा
हवाओं का हाथ थाम
घुँघरू बाँध, तुम्हारे साथ चलता,
सरसराता रहा
वीरान सड़क पर
उड़ना,डूबना, तैरना, सरसराना
जारी रहा सदियों तक
किसी यायावर-सा
और यूँ मैंने जाना कि
पंछी, आकाश, ख़्वाब , पंख, हवा
इस बावरे मन के ही रूपक हुए!