Last modified on 22 जून 2021, at 22:47

रिश्ते / सुदर्शन रत्नाकर

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:47, 22 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन रत्नाकर |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बारिश में टपकती रही
घर के कोने की छत
और दीवारों में सीलन
भरती रही
बार बार करवाया प्लास्टर
पर हर बार पपड़ी उतरती रही
एक बार भरी जो सीलन
फिर निकली ही नहीं
क्योंकि छत की दीवार तो जोड़ी ही नहीं
पानी पत्तों को दिया
जड़ें सूखती रहीं
रिश्ते नाज़ुक होते हैं
छत की तरह नहीं सम्भालो तो
दिल में भरी सीलन
फिर जाती नहीं।