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बुद्धत्व / सुदर्शन रत्नाकर

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क्रोध समाप्त हो गया है
उसके साथ ही अग्नि भी
शांत हो गई है,
भावों की, विचारों की
तन की, मन की
क्या यह बुद्धत्व पाने की स्थिति है या
आत्मा का शून्यता में
विलीन हो जाने का समय है
अंतहीन, सीमारहित चिरनिद्रा,
जहाँ सब समाप्त हो जाता है
बस आनन्द ही आनन्द है
कुछ खोकर
बहुत कुछ नया पाने का।