फ़ासले भी बने रहे
और जुदा भी नहीं हुये
हम एक दुसरे से दूर
ज़रा भी नहीं हुये
अगर कोई धूप
उसकी सेल्फी में
उसके जिस्म को
छूते नज़र आई
हम बादलों की तस्वीर
बना के उसे भेज देते थे
अगर ख़्वाब में भी
किसी बात पे
वो मुझसे रूठ जाती थी
आँख खुलते ही
वीडियो कॉल पे
हम उसकी
हम उसकी
पेशानी चूम लेते थे
इस तालाबंदी में भी
दिलके दरवाज़े खुले रहे
हम मिलते जुलते रहे
एक अलग लुत्फ़ था
तन्हाई में
उससे चैट का
शुक्रिया
बहुत शुक्रिया इंटरनेट का॥