ईंट के तकिये
पड़े थे यहाँ वहां
जिस्मों के साथ मगर
सर गायब दिखे
फुटपाथ पे जो सोया करते थे
वो कहीं तो जाग रहे होंगे
और वहाँ भी उनके लिए
कितनी मुश्किल से
रात आती होगी
कितनी जल्दी
सवेरा होता होगा
ना जाने कब
ज़िन्दगी
अपने दस्तूर पर आयेगी
ना जाने कब
पुटपाथों के ये मकीं
अपने अपने
जिस्म की निशानियां
यहाँ उठाने आयेंगे
ना जाने कब
घंटी बजेगी
ज़िन्दगी के स्कूल की
ना जाने कब
इन साँसों का
व्यापर पूरा होगा
ना जाने कब
छुट्टी का
इंतज़ार पूरा होगा॥