Last modified on 24 जून 2021, at 21:30

आप बीती / पंछी जालौनवी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 24 जून 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंछी जालौनवी |अनुवादक= |संग्रह=दो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हुक्म सामाजिक दूरी का था
जिस्मानी फ़ासला भी
ज़रूरी-सा था
कुछ अपनों की फ़िराक़ में
पेट के ईंधन की तलाश में
पांव में वह सफ़र डाले
हथेली पर अपना चेहरा रखकर
खिड़कियों से बाहर
हाथ निकाले
किसी स्टेशन पर
भूख प्यास के मंज़र
देख रहा था
थोड़े थोड़े फ़ासले पर
सफ़ेद रंग के
सर्कल बने थे
और हर सर्कल पर
शर्म की चादर लपेटे
बेबसी अपना बदन समेटे
अपने हिस्से के
ईंधन की मुन्तज़िर थी
सारे सर्कल भरे हुये थे
हम ज़रा-सा डरे हुये थे
वक़्त की भारी कमी थी
गाड़ी स्टेशन से चल चुकी थी
कुछ ही लम्हों में
हम ख़ुद अपना लुक़मा बन गये
हम ख़ुद अपने आपको निगल गये॥