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पर्यावरण / पंछी जालौनवी

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दो सगी नदियाँ
गंगा और यमुना
ज़मीं के कुछ दूरी रिश्तेदार
चाँद, तारे, फ़लक
खिज़ां और बहार
सब एक दुसरे से
जब मुलाक़ात करते होंगे
इंसानों की बात करते होंगे
आपस में लगती होगी
जब इनकी पंगत
हंस हंस के तंज़ कसते होंगे
ख़ूब ज़रुरत बो के
धुंआ उगाया था इंसां ने
कहीं कहीं तो क़ुदरत को भी
ठेंगा दिखाया था इंसां ने
नदी का अपना रोना
शजर अपनी शिकायत होगी
फ़ज़ा अपनी कहानी
ज़मीं की अपनी
मुसीबत होगी
आपस में जब इनकी
महफ़िल जैम जाती होगी
लम्हा दो लम्हा
बातें सुनकर इनकी
क़ुदरत होगी
अर्ज़ी इनकी सुनके
आस्मां के उसपार से फिर
फ़ैसले उतरते हैं कुछ इसक़दर
मुंह पर कपड़ा बाँध के
फिरता है इंसां दर बदर॥