तुम्हारी तारीख़ों के
हर ख़ाने पर
किसी न किसी
हादसे के निशाँ रक्खे हैं
कुछ ज़ख़्म चस्पां हैं
कुछ लम्हें बयाबान रक्खे हैं
तुम जब आये थे
हमने कितना ख़्याल किया था
दिलकी गहराइयों से तुम्हारा
इस्तक़बाल किया था
मगर तुम्हें जो करना था कर गये
दिल तोड़ा सबका हद से गुज़र गये
हालांकि
बिन बुलाये मेहमान थे तुम
आना तुम्हारा तय था
जाने की भी तारीख़ मुक़र्रर है
ठिकाना तुम्हारा तय था
तुमसे एक सबक़ तो
सीखा है हम सबने
अब कोई भी आये
साल नया
दो चार महीने उसको
पहले हम आज़मायेंगे
फिर नया साल आने का
जश्न मनायेंगे ॥