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ये हुनर / गुँजन श्रीवास्तव

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बड़ा ताज़्ज़ुब होता है
आपको डर नहीं लगता !
बदबू नहीं आती आपकी नाकों तक
लाशों की !

दिखते नहीं अपनी चप्पलो में
आपको किसी गिद्ध के पंजे !

सुनाई नहीं पड़ती आपको
अख़बार में धमाकों की गूँज
महिलाओं की बेबस चीख़ !!

मुझे ताज़्ज़ुब होता है
जब आप देख नहीं पाते
अपने पुलाव में फांँसी के फन्दे और
किसान के गले को

जब आपको दिखती नहीं
चर्मकार की टूटी चप्पलें
किसान के सूखे बर्तन
नाई की उलझी बढ़ी दाढ़ी और बाल
और दरज़ी के फटे - पुराने सिलवटों भरे कपड़े !

ताज़्ज़ुब होता है — देखी नहीं आपने
सड़क पर बैठे भिखारियो में
आपके निकट आने की आस

गुब्बारे में भरी एक रुपये में बिकती
गरीब की साँस !
मुझे ताज़्ज़ुब होता है !!!

एक तरफ़ अख़बार में बिछी लाशें देख रहा होता हूँ
और दूसरी तरफ़ आपकी शराब और
सिनेमाघरों में टिकट के लिए कशमकश

बड़ी हैरत से घूरता हूँ आपको
श्मशान छोड़ सड़कों पे बेबाक़ घूमता देख
और सोचता हूँ
अच्छा है जो मैंने ये हुनर नहीं सीखा !