तापमान की उथल-पुथल से
वारिधि विचि घन आता है
झम-झम जलधर अरु घनवल्ली,
अति वर्षा कर जाता है।
तीव्र घूमते चक्रवातों का,
व्यास अपरिमित सागर तट-
कहीं सघन सागर घर्षण ही,
अम्फान जन्म दाता है॥
बोस, हंस की जन्म भूमि की,
खाड़ी भरती घर पानी।
जनजीवन में तेज हवायें,
करती कितनी मनमानी।
प्रकृति कोप अम्फान है बना,
जड़ सजीव को कब देखे-
निर्मोही ऐसा झंझावत,
तहस नहस इसकी वानी॥