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मौन / मृदुला सिंह

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कुछ बच्चे कुछ नही सुनते
कुछ बच्चे कुछ नहीं बोलेते
वे देखते है दुनिया अपनी आंखों से
दुनिया का अर्थशास्त्र और भूगोल
समझते है बिना सुने बिना बोले
नदी के शोर का मनोविज्ञान
बारिश का संगीत
खौफनाक समय की आवाजें भी
समझते है यूँ ही खेल खेल में

भाषा के गणित में
नही उलझता इनका मन
जानते नही भाषा की गिरावट
इनकी जुबान पर नही उगते
गालियों के कैक्टस
इन्हें बेचारे न कहिएगा
सारे संकेत समझते है ये
जुबान वालों से भी ज्यादा

देखा है मैंने इन्हें
मादर की थाप पर थिरकते
सावन सा झूमते
होस्टल के सिकुड़े कमरों में
रच रहे है नया समाजशास्र
आपसी मेल का
पढिये कभी इनकी आंखों में
तैरती आदिम लिपियाँ
मिलेगी आदमियत की परिभाषा
जो जुडती है
मानवता के पहले छोर से

इनका मौन
दुनिया को निःशब्द करता है
ये सलोने बच्चे
नही लड़ते स्वार्थ के लिए
ये बच्चे हासिल करते है
अपने सपने अपनी हैसियत से